Monday 31 August 2015

हँसकर कबूल क्या कर ली

हँसकर कबूल क्या कर ली सजाएँ मैंने,
ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया हर इलज़ाम मुझ पर मढ़ने का।

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