Monday 24 August 2015

सामने मंज़िल थी ......

सामने मंज़िल थी और पीछे उसका वजूद;
क्या करते हम भी यारों;
रुकते तो सफर रह जाता चलते तो हमसफ़र रह जाता।

No comments:

Post a Comment